🌸💐 मूर्ति पूजा – भक्ति का साकार स्वरूप 💐🌸
✨ प्रस्तावना
सनातन धर्म में भक्ति और उपासना के अनेक मार्ग हैं—कोई निराकार ब्रह्म में ध्यान लगाता है,
तो कोई साकार स्वरूप में। हमारे वेद, पुराण और उपनिषद सभी यह बताते हैं कि
जब साधक का मन एकाग्र नहीं हो पाता, तब भगवान के दिव्य स्वरूप की मूर्ति
उसके लिए ध्यान का माध्यम बनती है। मूर्ति, केवल पत्थर या धातु का टुकड़ा नहीं,
बल्कि हमारे हृदय में बसे भगवान का दृश्य स्वरूप है।
📖 स्वामी विवेकानंद और मूर्ति पूजा की कथा
एक बार एक धर्मसभा में एक कुटिल और दुष्ट व्यक्ति खड़ा होकर कहने लगा –
“मूर्ख लोग मूर्ति पूजा करते हैं। यह पत्थर निर्जीव है। हम तो पत्थरों पर पैर रखकर चलते हैं।
सिर्फ मुखड़ा बनाकर उसे भगवान कैसे मान सकते हैं?”
सभा में बैठे लोग उसकी बात पर सहमति में सिर हिला रहे थे।
स्वामी विवेकानंद जी भी वहीं उपस्थित थे, लेकिन उन्होंने तुरंत कुछ नहीं कहा।
सभा समाप्त होने से पहले उन्होंने बस इतना कहा –
“कल आप अपने पिताजी की तस्वीर लेकर आइए।”
अगले दिन वह व्यक्ति अपने पिता की सुंदर फ्रेम की हुई तस्वीर लेकर आया।
स्वामी जी ने तस्वीर ली, ज़मीन पर रखी और बोले –
“इस तस्वीर पर थूकिए।”
वह व्यक्ति चौंक गया और गुस्से में भरकर बोला –
“ये मेरे पिता जी की तस्वीर है! इस पर मैं कैसे थूक सकता हूँ?”
स्वामी जी ने कहा –
“तो पैर से छू लीजिए।”
इस पर वह और क्रोधित हो गया –
“आप कैसे कह सकते हैं कि मैं अपने पिताजी की तस्वीर का अपमान करूं?
यह सिर्फ तस्वीर नहीं, मेरे पिताजी का प्रतीक है। इसका अपमान मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता।”
मुस्कुराते हुए स्वामी विवेकानंद जी बोले –
“हम हिंदू भी मूर्तियों में अपने भगवान को देखते हैं, इसीलिए उनकी पूजा करते हैं।
जैसे आपको इस तस्वीर में अपने पिता दिखते हैं, वैसे ही हमें मूर्तियों में ईश्वर का दर्शन होता है।”
सभा में गहरी शांति छा गई। सब समझ गए कि मूर्ति
पूजा केवल पत्थर की आराधना नहीं, बल्कि भाव और श्रद्धा की आराधना है।
🕉 मूर्ति पूजा का तात्त्विक महत्व
मूर्ति पूजा द्वैतवाद के सिद्धांत पर आधारित है।
निराकार ब्रह्म को मन में धारण करना कठिन है, इसलिए साधक साकार रूप का सहारा लेते हैं।
मूर्ति साधक के मन को एकाग्र करती है, जिससे भक्ति भाव प्रबल होता है।
यह भगवान की लीलाओं और गुणों को दृश्य रूप में अनुभव करने का अवसर देती है।
🌼 मूर्ति पूजा के आध्यात्मिक लाभ
मन का एकाग्र होना – साकार रूप देखने से ध्यान स्थिर होता है।
भावनाओं की पवित्रता – भगवान का स्वरूप मन में पवित्र भाव भरता है।
भक्ति का अनुभव – पूजा के समय मन में प्रेम, श्रद्धा और आनंद का संचार होता है।
संस्कारों का संरक्षण – अगली पीढ़ी में भी ईश्वर-भक्ति का भाव जगता है।
दैनिक साधना का आधार – मूर्ति के सामने बैठकर जप, ध्यान और कीर्तन करना सहज हो जाता है।
🔮 निष्कर्ष और प्रेरणा
मूर्ति पूजा कोई अंधविश्वास नहीं, बल्कि भक्ति की सजीव परंपरा है।
जैसे किसी प्रियजन की तस्वीर देखकर मन भावुक हो जाता है,
वैसे ही भगवान की मूर्ति देखकर हृदय भक्ति से भर उठता है।
मूर्ति में पत्थर नहीं, बल्कि उसमें बसाए भगवान के स्वरूप को देखिए—
तब पूजा केवल अनुष्ठान नहीं, बल्कि ईश्वर से मिलन बन जाएगी।
🌹 समापन
"मूर्ति पत्थर की हो सकती है, पर भाव अमर होते हैं।
जहाँ भाव होते हैं, वहाँ भगवान स्वयं प्रकट होते हैं।"
🙏🌺 श्री राधे राधे 🌺🙏