लंका दहन – जब हनुमान जी ने पूरी लंका को जला डाला
Lanka Dahan – When Hanuman Ji Burnt the Golden Lanka
🌺 भूमिका: जहाँ धर्म का अपमान होता है, वहाँ हनुमान जी अग्नि बनकर प्रकट होते हैं
लंका — स्वर्ण से बनी नगरी,
परंतु भीतर से घमंड, अहंकार और अधर्म से सड़ चुकी थी।
और जब लंका नरेश रावण ने सीता माता का हरण करके
धर्म और नारी सम्मान दोनों को ललकारा,
तो श्री हनुमान जी एक दूत बनकर नहीं,
बल्कि प्रलय की अग्नि बनकर लंका पहुँचे।
लंका दहन केवल एक युद्ध की घटना नहीं है,
बल्कि यह सत्य की रक्षा, धर्म की विजय, और अहंकार के विनाश की अमिट गाथा है।
📖 लंका में प्रवेश – हनुमान जी का गुप्त अभियान
हनुमान जी समुद्र लांघकर लंका नगरी में प्रवेश करते हैं।
पहली बार वे लंकिनी नामक राक्षसी से भिड़ते हैं,
और उसे एक मुष्टिका (मुक्का) से पराजित कर
लंका में प्रवेश करते हैं।
रात के अंधेरे में वे अशोक वाटिका में पहुँचते हैं,
जहाँ सीता माता को रावण ने कैद कर रखा होता है।
हनुमान जी ने राम नाम की मुद्रिका माता सीता को देकर
उन्हें श्रीराम का संदेश और विश्वास दिया —
“मां! प्रभु शीघ्र आपको लेने आ रहे हैं।”
🔥 रावण का दरबार और हनुमान का अभूतपूर्व साहस
हनुमान जी ने लंका में अपना बल प्रकट किया —
उन्होंने अशोक वाटिका में राक्षसों का संहार किया,
जिसके बाद उन्हें रावण के दरबार में बाँधकर ले जाया गया।
रावण ने हनुमान जी का अपमान करते हुए
उनकी पूँछ में आग लगवाने का आदेश दिया।
परन्तु रावण भूल गया था —
"वह पूँछ केवल पूँछ नहीं, एक अग्निशक्ति का स्रोत थी।"
🔥 लंका दहन – जब पूँछ बनी प्रलय की ज्वाला
हनुमान जी ने जलती हुई पूँछ के साथ
पूरी लंका नगरी में चक्कर लगाया।
सोने के महल,
राक्षसों की गढ़ियाँ,
रावण की सभा,
उसकी सेना की छावनियाँ —
हर ओर भीषण अग्नि फैल गई।
हनुमान जी ने केवल भौतिक लंका को नहीं जलाया —
बल्कि रावण के अहंकार, लालच, और अधर्म की जड़ें जला दीं।
“जरा सी पूँछ से जली, पूरी लंका की शान,
ये है श्रीराम का दूत, वीर हनुमान!”
🙏 अशोक वाटिका से विदा – सीता माता से अंतिम प्रणाम
लंका जलाकर हनुमान जी पुनः सीता माता के पास जाते हैं।
माता उन्हें आशीर्वाद देती हैं और कहती हैं:
“हनुमान! प्रभु राम का संदेश और तुम्हारी भक्ति मुझे शक्ति दे रही है।”
हनुमान जी ने उन्हें प्रणाम किया और
वायुमार्ग से पुनः श्रीराम के पास लौट आए।
🔱 लंका दहन की आध्यात्मिक महिमा (अर्थ)
पूँछ में आग = अधर्म की परीक्षा
लंका का जलना = अहंकार का नाश
हनुमान जी का अपराजेय रूप = सच्चे भक्त की शक्ति
श्रीराम के नाम की विजय = धर्म की अमरता
🌠 लंका दहन आज के युग में क्या सिखाता है?
जब किसी के जीवन में अत्याचार, अन्याय, और अहंकार बढ़ जाए —
तब हनुमान जैसा साहस आवश्यक होता है।यह कथा सिखाती है कि एक सच्चा सेवक
बिना किसी लोभ या भय के
सत्य के लिए खड़ा हो सकता है, और
पूरी व्यवस्था को हिला सकता है।
📜 रामचरितमानस से चौपाई (लंका दहन प्रसंग):
"देखि महा भट हनुमाना। चली मारि महा करि धावा॥
एकहिं वारि उठाइ कि सारो। धराशाई करि सैल समारो॥"
(अर्थ: हनुमान जी ने बलशाली राक्षसों को देखा, और एक ही प्रहार में उन्हें धराशायी कर दिया।)
🙏 अंतिम विचार – पूँछ में अग्नि नहीं, अधर्म के लिए चेतावनी थी
हनुमान जी ने लंका को सिर्फ जला नहीं दिया,
बल्कि जगाया भी —
कि जो भी धर्म के मार्ग से हटेगा, उसका अंत निश्चित है।
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🚩 जय श्रीराम
🚩 लंका दहन के वीर को नमन
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