🌊 शिव – नीलकंठ कैसे बने?


"जो संसार का विष पी जाए,
और फिर भी मुस्कुरा दे – वही सच्चा महादेव है।"

🔸 1. सागर मंथन और विष का प्रकट होना

जब देवता और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया,
तो उसमें से 14 रत्न निकले —
जिनमें से एक था सबसे घातक — हालाहल विष

यह विष इतना प्रचंड था कि
पूरे ब्रह्मांड को जलाने की शक्ति रखता था।
देवता–असुर सभी भयभीत हो गए।


🔸 2. तब कौन आया सबके उद्धार के लिए?

तब सब ने शरण ली भगवान शिव की।
उन्होंने न केवल सुना —
बल्कि तुरंत स्वयं उस प्रलयंकारी विष को
अपनी हथेली में लेकर पी लिया।

लेकिन उन्होंने विष को निगला नहीं —
उसे गले में ही रोक लिया,
जिससे उनका कंठ नीला हो गया।

तभी से वे कहलाए "नीलकंठ महादेव"।


🔸 3. इसका गहरा आध्यात्मिक अर्थ क्या है?

"नीलकंठ वह है जो सबका दर्द पीकर
भी खुद मुस्कराता है — और दूसरों को अमृत बाँटता है।"


🔸 4. नीलकंठ बनने की प्रेरणा

💠 यदि जीवन में कोई विष घुल जाए –
जैसे आलोचना, धोखा, कटुता —
तो उसे पी जाएं
पर हृदय को विषैला न बनने दें।

💠 शिव हमें सिखाते हैं:
"पी लेना सीखो, पर उसे अपने ऊपर हावी मत होने दो।"


🔸 5. आज भी लोग क्यों जाते हैं नीलकंठ के दर्शन करने?

हरिद्वार के पास नीलकंठ महादेव मंदिर में मान्यता है
कि यही वह स्थान है जहाँ
शिव ने विष पान किया था।

आज भी लाखों भक्त
श्रद्धा से वहाँ दर्शन करने जाते हैं
और अपनी जीवन की कटुता शिव को सौंप देते हैं।


🙏 भक्ति भावना यही सिखाती है –
शिव जैसा विशाल हृदय और नीलकंठ जैसी सहनशक्ति
हर भक्त के जीवन में होनी चाहिए।


हर हर महादेव | जय श्री शम्भू | ॐ नमः शिवाय



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