📜 संत तुलसीदास जी और हनुमान दर्शन की अद्भुत कथा
 

जब भी किसी भक्त के मन में श्रीराम के प्रति निष्कलंक प्रेम और भक्ति होती है, 

तब प्रभु स्वयं उसके मार्ग में आते हैं — यह सिद्धांत तुलसीदास जी के जीवन से प्रमाणित होता है।
संत तुलसीदास जी केवल एक महान कवि नहीं, बल्कि भगवान श्रीराम के परम भक्त थे। 

उन्होंने रामचरितमानस जैसे महाकाव्य की रचना कर समस्त भारत में भक्ति की धारा प्रवाहित की।

परंतु एक समय था जब वे प्रभु श्रीराम और उनके अनन्य सेवक हनुमान जी के प्रत्यक्ष दर्शन की अभिलाषा लिए प्रतिदिन तप, 

साधना और सेवा करते थे। वह प्रतिदिन सुबह गंगा स्नान करके एक विशेष स्थान पर प्रभु का ध्यान करते और 

हनुमान जी से प्रार्थना करते —
"हे पवनपुत्र! यदि मेरी भक्ति सच्ची है, तो कृपा कर प्रभु श्रीराम का दर्शन करवा दीजिए।"

🌿 हनुमान जी से संकेतमय संवाद


एक दिन उन्हें एक वृद्ध साधु मिला, जो बहुत सहज भाव से उनसे बोला —
"सच्चे मन से प्रभु श्रीराम के दर्शन की इच्छा है, तो हनुमान जी की कृपा ले आओ।"
तुलसीदास जी ने उस साधु के वाक्य को सामान्य नहीं माना और उसी क्षण से और अधिक गहन साधना में लग गए।

🌟 चित्रकूट की ओर संकेत


एक रात्रि तुलसीदास जी को स्वप्न में दिव्य संकेत मिला कि वे चित्रकूट चले जाएँ।
तुलसीदास जी बिना विलंब किए चित्रकूट की ओर निकल पड़े। वहाँ पहुँचकर वे एक विशिष्ट स्थान पर ठहरे, 

और वहीँ एक पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर हनुमान जी का ध्यान करते हुए प्रभु श्रीराम के दर्शन की कामना करते रहे।


🙏 हनुमान जी का दिव्य प्रकट होना


वहाँ एक बार फिर वह वृद्ध साधु उन्हें दर्शन देने आया — परंतु इस बार तुलसीदास जी की चेतना जाग गई।
उन्होंने पहचान लिया कि यही तो स्वयं हनुमान जी हैं, जो उनकी परीक्षा लेने बार-बार भिन्न रूपों में आ रहे थे। 

उन्होंने हनुमान जी के चरणों में गिरकर प्रणाम किया।
हनुमान जी ने प्रसन्न होकर कहा —
"कल इसी स्थान पर तुम्हें साक्षात श्रीराम और लक्ष्मण के दर्शन होंगे।"
तुलसीदास जी का मन पुलकित हो गया।

🌸 श्रीराम के दर्शन और काव्य प्रेरणा


अगले दिन भोर में, जब तुलसीदास जी ध्यान में लीन थे, तभी एक तेजोमय प्रकाश में दो दिव्य बालक वहाँ प्रकट हुए।
वे थे – प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण जी।
तुलसीदास जी की आँखों से अश्रुधारा बह निकली। वे दोनों भाइयों के चरणों में लोट गए 

और प्रभु ने प्रेमपूर्वक उन्हें उठाकर आलिंगन किया।

🌼 उस क्षण तुलसीदास जी के हृदय में जो रस उतरा — वही रामचरितमानस की प्रेरणा बना।


🔖 यह कथा हमें सिखाती है:


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