🌺 हनुमान जी की बाल लीलाएँ – दिव्य बाल्यकाल की अद्भुत गाथा 🌺
हनुमान जी केवल शक्ति और पराक्रम के ही प्रतीक नहीं हैं, वे भक्ति, विनम्रता और चंचल बालस्वरूप के भी दिव्य रूप हैं।
उनके बाल्यकाल की लीलाएँ, श्रद्धालुओं के लिए प्रेरणा, हँसी, आश्चर्य और भक्ति का अनुपम संगम हैं।
उनका जन्म वानरराज केसरी और माता अंजना के घर हुआ था। माता अंजना ने कई वर्षों तक कठिन तपस्या की थी,
तब जाकर भगवान शंकर ने आशीर्वाद स्वरूप अपने अंश से पवनदेव के माध्यम से हनुमान जी को उनके गर्भ में स्थापित किया।
इसीलिए हनुमान जी को पवनपुत्र भी कहा जाता है — जो तेज, बल, और गति के देवता हैं।
🍃 बचपन की भूख और सूर्य को फल समझकर निगलना
हनुमान जी का बाल रूप अत्यंत तेजस्वी था। एक दिन जब माता अंजना कहीं गईं, तो बालक हनुमान को भूख लगी।
उन्होंने आकाश में उदित सूर्य को लाल रंग का बड़ा फल समझ लिया। चंचलता में उन्होंने आकाश में छलांग लगाई और सूर्य की ओर बढ़ चले।
यह देखकर देवराज इन्द्र घबरा गए। उन्होंने हनुमान जी को रोकने के लिए वज्र प्रहार किया, जिससे बालक हनुमान पृथ्वी पर गिर गए और उनकी ठोड़ी पर चोट आई।
पवनदेव, जो अपने पुत्र की दशा देखकर आहत हुए, उन्होंने क्रोधित होकर सारी वायु का प्रवाह रोक दिया।
ब्रह्मांड में प्राणवायु रुक गई। सारे देवता हनुमान जी को देखने आए और उन्हें अनेक वरदान दिए।
ब्रह्मा जी ने अमरता का आशीर्वाद दिया, विष्णु जी ने उन्हें चिरंजीवी बनाया, शिवजी ने उन्हें अभय और असीम शक्ति दी,
सरस्वती ने उन्हें ज्ञान, और इन्द्र ने स्वयं अपने वज्र के प्रभाव से उन्हें अजर–अमर बना दिया।
🌿 ऋषि-मुनियों से शिक्षा और ब्रह्मज्ञान प्राप्ति
हनुमान जी बचपन से ही अत्यंत जिज्ञासु और ज्ञान-पिपासु थे। उन्हें शिक्षा प्राप्त करने की प्रबल इच्छा थी।
वे सूर्य देव को ही अपना गुरु मानकर उनके रथ के सामने खड़े हो गए और विनती की – “हे देव! मुझे ज्ञान दीजिए।
सूर्यदेव ने कहा, “मैं निरंतर गमन में हूँ, रुक नहीं सकता।” इस पर हनुमान जी बोले – “मैं रथ के साथ-साथ चलता रहूँगा।
यह देखकर सूर्यदेव प्रसन्न हुए और उन्होंने हनुमान जी को वेद, शास्त्र, व्याकरण और नीतिशास्त्र का संपूर्ण ज्ञान प्रदान किया।
इस प्रकार, हनुमान जी केवल बलशाली नहीं, अपितु ज्ञानी, नीतिवान, और गुणों की खान बन गए।
🕉️ उनकी चंचलता और शाप
हनुमान जी बाल्यकाल में इतने चंचल और बलवान थे कि ऋषियों की तपस्या में विघ्न डाल देते थे।
कभी उनकी माला छीन लेते, कभी उनके यज्ञकुंड में कूद जाते, तो कभी उनके आसन उड़ा देते। इस पर एक ऋषि ने उन्हें शाप दिया –
“तू अपने बल को भूल जाएगा, जब तक कोई तुझे याद न दिलाए।”
इस शाप के पीछे भी एक गूढ़ रहस्य था – हनुमान जी को अपने बल का बोध तब होता जब आवश्यकता सबसे अधिक होती,
और तब वे अपनी सीमा के पार जाकर चमत्कार कर पाते। यह बात बाद में रामायण में तब सिद्ध हुई जब जामवंत ने उन्हें याद दिलाया –
“हे पवनपुत्र! तुम क्या भूल गए कि तुम में क्या सामर्थ्य है?” और तभी हनुमान जी ने समुद्र लांघा।
🌺 निष्कलंक बालक – निष्काम भक्त
हनुमान जी की बाल लीलाओं का सार यही है कि वे शक्ति के साथ-साथ नम्रता के प्रतीक भी थे।
उनके भीतर कोई अहंकार नहीं था। उनके लिए सबसे प्रिय कार्य था –
प्रभु श्रीराम का नाम जपना, उनके गुणों का गान करना और उनकी सेवा करना।
उनका बाल्यकाल हमें सिखाता है कि सच्चा बल वही है,
जो भक्ति में झुका हुआ हो, और सच्चा ज्ञान वही है जो अहंकार से रहित हो।
👉 यह कथा हमें क्या सिखाती है?
बालक होने के बावजूद, हनुमान जी में अपार शक्ति और ज्ञान था।
ईश्वर के वरदान और भक्त की निष्कलंक भावना किसी भी असंभव कार्य को संभव बना देती है।
चंचलता अगर सेवा में लग जाए, तो वह भी साधना बन जाती है।
हमें अपने भीतर के हनुमान को पहचानना है — वही बालक जो बिना डर के, प्रेम और विश्वास के साथ प्रभु की ओर बढ़ता है।